10 Photography Tips in Hindi: लोगों के लिए फोटोग्राफी कमाई के जरिया से कहीं ज्यादा शौक होता है. लेकिन अगर आपका यही शौक आपकी कमाई का जरिया बन जाए तो क्या ही कहने..! हालांकि अगर आप फोटोग्राफी के बारे में अंदर तक जानना चाहते हैं तो सही जगह आए हैं. हम आपको फोटोग्राफी की बारीक से बारीक बातें बताएंगे. ये इस कैटेगरी का पहला आर्टिकल है. आज हम बात करेंगे कैमरा चलाने की शुरुआती बातों के बारे में.
ये बहुत ही अजीब शौक है. एक बार लग गया को समझो कि छूटता नहीं. फिर चाहें आप किसी भी गली में निकलें आपको हर चीज एक फोटो ऑब्जेक्ट लगने लगती है. आप चाहते हो कि उस चीज को बेस्ट एंगल के साथ क्लिक कर अपनी ऑडियंस को अमेज कर दें. कई बार प्रोफेशनल फोटोग्राफर की एक नॉर्मल फोटो भी आपको चकित कर देती है और आप भी उसकी तरह क्लिक करना चाहते हैं. (Read Also: केवल 2500 रुपये में करें बद्रीनाथ मंदिर और भारत के आखिरी गांव माना की यात्रा, फुल गाइड)
क्या फोटोग्राफी के लिए हैवी महंगे कैमरे और लेंस का होना जरूरी है?
जवाब है बिल्कुल नहीं..! अगर आपको फोटोग्राफी के बेसिक्स के बारे में अच्छे से पता है तो किसी हैवी फैंसी कैमरे की जरूरत नहीं है. मुझे ही देख लीजिए, मैं अपने 90 प्रतिशत से ज्यादा फोटो मोबाइल से क्लिक करता हूं. डीएसएलआर न भी हो तो आजकल हर व्यक्ति के जेब में एक स्मार्ट फोन होता ही है जिसमें डीएसएलआर जैसी क्वालिटी वाला मुख्य कैमरा भी होता है. चलिए जानते हैं 10 बेस्ट फोटोग्राफी टिप्स (Photography Tips in Hindi)
यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन कई नए फोटोग्राफर अपने कैमरे को सही ढंग से नहीं पकड़ते हैं, जो कैमरा शेक और ब्लर इमेज का कारण बनता है. कैमरा शेक (यानी कैमरे को हिलने डुलने से) रोकने के लिए ट्राइपॉड्स सबसे अच्छा तरीका है, अब चूंकि आप कम लाइट की स्थिति में शूटिंग नहीं कर रहे हैं, तो आपको ट्राइपॉड का उपयोग करने की भी ज्यादा जरूरत नहीं है, इसलिए ऐसी स्थिति में मूवमेंट के दौरान कैमरा शेक से बचने के लिए अपने कैमरे को ठीक से पकड़ना महत्वपूर्ण है.
हालांकि ये सब धीरे-धीरे अपने आप आ जाता है लेकिन जब आप अंततः कैमरे को पकड़ने का अपना तरीका विकसित करें, उससे पहले जरूरी है कि आप अपना कैमरा हमेशा दोनों हाथों से पकड़ें. अपने दाहिने हाथ (राइट हैंड) से कैमरे के दाईं ओर पकड़ें और कैमरे के वजन को सपोर्ट करने के लिए अपने बाएं हाथ को लेंस के नीचे रखें. (तस्वीर देखें..) कैमरे को आप अपने शरीर के जितना करीब रखेंगे, उतने ही सही से आप इसे पकड़ पाएंगे. यदि आपको एक्स्ट्रा स्टेबिलिटी की जरूरत है, तो आप अपने घुटनों पर झुक कर शॉॉ ले सकते हैं.
RAW jpeg की तरह एक फ़ाइल फॉर्मट है, लेकिन jpeg के उलट, यह आपके कैमरे के सेंसर द्वारा रिकॉर्ड किए गए सभी इमेज डेटा को कंप्रेस करने के बजाय उसे कैप्चर करता है. जब आप RAW में फोटो क्लिक करते हैं तो आपको न केवल हाई क्वालिटी वाली इमेजेस मिलेंगी बल्कि पोस्ट प्रोसेसिंग में भी आपका अधिक कंट्रोल होगा. उदाहरण के लिए, आप फोटो में आई समस्याओं को ठीक करने में सक्षम होंगे, जैसे कि ओवरएक्सपोज, अंडरएक्सपोज या और कलर टेम्प, व्हाइट बैलेंस और कंट्रास्ट को आराम से सेट कर सकते हैं.
रॉ फॉर्मट में क्लिक करने की एक निगेटिव साइड ये है कि इमेज फाइल का साइज ज्यादा हो जाता जिससे ये मैमोरी अधिक जल्दी भरता है. इसके अतिरिक्त, रॉ इमेजेस को हमेशा कुछ न कुछ पोस्ट प्रोसेसिंग की आवश्यकता होती है, इसलिए आपको फोटो एडिटिंग सॉफ़्टवेयर में इन्वेस्ट करने की आवश्यकता होगी. हालांकि आजकल बिना एडिट किए फोटो को लगभग कोई भी पोस्ट नहीं करता है. कुल मिलाकर रॉ में शूटिंग करने से आपकी इमेज क्वालिटी कमाल की बदल सकती है, इसलिए यदि आपके पास समय और स्पेस है, तो यह निश्चित रूप से इसे ट्राई करें. (Read Also: केवल तीन हजार में करें जीभी की यात्रा, जानिए हिमाचल के इस ‘स्वार्ग’ को घूमने का पूरा प्लान)
हालांकि बिगनर्स के लिए पहली बार में ये थोड़ा कठिन लग सकता है, लेकिन ये फोटोग्राफी का सबसे जरूरी आस्पेक्ट है. एक्सपोजर ट्राएंगल के तीन सबसे महत्वपूर्ण एलीमेंट होते है; आईएसओ (ISO), अपर्चर (Aperture) और शटर स्पीड (Shutter speed). जब आप मैन्युअल मोड में शूट कर रहे होते हैं, तो आपको शार्प, अच्छी तरह से लाइट वाली इमेज को प्राप्त करने के लिए इन तीनों चीजों को संतुलित करने में सक्षम होना होगा.
फिल्म रील (जिसे आम भाषा में नेगेटिव कहा जाता था) वाले कैमरे में जो काम फिल्म करती थी वही काम डिजिटल कैमरे में उसका सेंसर करता है. सेंसर कैमरे के अंदर उसके सबसे पिछ्ले हिस्से में होता है. लेंस से होकर कैमरे के अंदर आने वाला प्रकाश यानी की लाइट अंततः sensor तक पहुंचती है. कैमरा आईएसओ (ISO) उसके sensor की प्रकाश संवेदनशीलता यानी ‘लाइट सेंसिटिविटी’ है. ISO को 50, 100 … से लेकर कई हजार के नंबर्स स्केल में व्यक्त किया जाता है. इन्हें ISO number कहते हैं. डिजिटल कैमरे के आने से फोटोग्राफी में आईएसओ (ISO) का महत्व काफी बढ़ गया है.
सीधे शब्दों में कहें तो ISO एक तरह से आर्टिफिशियल लाइट का काम करता है. आईएसओ के नंबर ज्यादा रखने पर इमेज क्वालिटी पर उसका असर पड़ता है लेकिन कम लाइट में आपको अच्छी फोटो मिल जाती हैं. ज्यादा आईएसओ से इमेज में नॉइज या ग्रेन आ जाता है.
हर डिजिटल कैमरा-सेंसर का मिनिमम और मैक्सिमम ISO number निर्धारित होता है. इसी रेंज के अंदर आप अपनी जरूरत के हिसाब से अपने कैमरे में फोटो के लिए ISO सेट कर सकते हैं. आप जितना ऊंचा ISO सेट करेंगे लाइट के प्रति sensor उतना अधिक सेंसिटिव होगा. परिणामस्वरूप, फोटो का exposure बढ़ेगा और वह अधिक ब्राइट होगी.
आसान शब्दों में कहें तो अपर्चर किसी लेंस के भीतर बना हुआ वह छेद है जिससे होकर रौशनी कैमरे के अन्दर आती है. आप इसकी तुलना अपनी आँखों की पुतली से कर सकते हैं जिससे होकर प्रकाश भीतर रेटिना तक जाता है. आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही आप ऐसी जगह जाते हैं जहाँ कम लाइट है तो वहां हमारे आँख की पुतलियां फैल जाती हैं जिससे ज्यादा लाइट आंख के भीतर जा सके और हम साफ साफ देख सकें. इसी तरह आँख की पुतलियां अधिक प्रकाश में सिकुड़ जाती हैं जिससे अधिक रौशनी अन्दर न जाने पाए.
ठीक बिलकुल ऐसे ही किसी लेंस का एपर्चर भी काम करता है. यदि आपका कैमरा ऑटो मोड पर है तब वह कम लाइट देखते ही अपने छेद (अपर्चर) को बड़ा कर लेगा जिससे अधिक रौशनी सेंसर तक पहुचे और फोटो में बढ़िया एक्सपोजर मिल सके. इसी प्रकार अधिक लाइट में फोटो को ओवर एक्सपोजर से बचाने के लिए लेंस का छेद छोटा होता जायेगा.
Shutter Speed वह है जिससे आप आपने कैमरे में आती हुई लाइट को कण्ट्रोल कर सकते हैं. फोटोग्राफी में तीन सबसे महत्वपूर्ण सेटिंग्स में से एक है शटर स्पीड और बाकी दो aperture और ISO हैं. किसी भी कैमरा में शटर सबसे जरुरी हिस्सा होता है जो यह तय करता है की कितने समय तक लाइट इमेज सेंसर पर पड़े जिसको की शटर रिलीज बटन से कण्ट्रोल किया जाता है. शटर के खुलने और बंद होने के समय को शटर स्पीड की सेटिंग की मदद से सेट किया जाता है.
शटर स्पीड का सीधा मतलब है लाइट के सेंसर पर पड़ने वाला समय या जिस समय के लिए शटर खुलता और बंद होता है वो ही शटर स्पीड है. जैसे अगर हमें किसी तेजी से बहते हुए झरने की एक ऐसी पिक्चर लेना है जिसमे की एक एक बूंद दिखाई पड़े या किसी नल से निकलने वाले पानी की बूंदों को कैप्चर करना हो तो उसके लिए हमे high शटर स्पीड में पिक्चर को लेना होगा. ठीक वैसे ही अगर हमे किसी नदी के बहते हुए ऐसी पिक्चर लेना है की पानी दूध की तरह दिखे जिसे की milky effect कहते है तो हम उसे low शटर स्पीड में लेना होगा. ये बहुत बेसिक सी बात है. ये सब अनुभव से आता है. आप जितना प्रैक्टिस करेंगे उतना अधिक सीखते जाएंगे.
कैमरा में जो F1.7, F2.0 या F 22 ये जो वैल्यू है 1.7 या फिर 2.0 इन्हें हम वैल्यू कहते है और इस F से मापा जाता है जिसमे F का मलतब होता है फोकल लेंथ. तो हमेशा ध्यान रखना जो F वैल्यू है वो जितना कम रहेगा लेंस का दरवाजा उतना ज्यादा खुला होगा और लाइट ज्यादा अन्दर जा पायेगी. उदाहरण के लिए ये फोटो देखें.
जब आप किसी इंसान या जानवर को क्लिक करते हैं, तो आपका सब्जेक्ट इमेज का मुख्य फोकस होना चाहिए और इसे हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका वाइड अपर्चर का उपयोग करना है. यह आपके सब्जेक्ट को शार्प बनाए रखेगा, जबकि बैकग्राउंड में किसी भी तरह की गड़बड़ी को ब्लर कर देगा.
ध्यान रखें कि सबसे कम एफ / नंबर का मतलब है वाइड एपर्चर और जितना वाइड एपर्चर है इफेक्ट उतना ही मस्त आएगा. कुछ लेंस f/ 1.2 से कम जा सकते हैं, लेकिन f/ 5.6 के एपर्चर पर भी अच्छी फोटो क्लिक कर सकते हैं. एपर्चर को अगर आप छेड़छाड़ नहीं करना चाहते हैं तो अपन कैमरे में (Av or A) मोड पर स्विच करें और विभिन्न एपर्चर के साथ कुछ शॉट्स लेने की कोशिश करें.
लैंडस्केप इमेज के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, क्योंकि आपके सामने चट्टानों से लेकर बड़े पहाड़ों तक सब कुछ शार्प फोकस में होना चाहिए. इसलिए जब आप लैंडस्केप शूट करते हैं तो आप चाहते हैं कि सब कुछ फोकस में हो. A larger f/ number means a narrower aperture अर्थात जितना ज्यादा F नंबर होगा उतन कम या नैरो अपर्चर होगा. इसलिए हो सके तो F/22 या उससे ज्यादा अपर्चर पर लैंडस्केप शूट करें. हालांकि ये आपके कैमरा लेंस पर निर्भर करेगा कि कितना ज्यादा एफ नंबर तक जा सकते हैं. बिना शटर स्पीड की चिंता किए आप चाहे तो Av or A मोड में क्लिक कर सकते हैं.
अगर आप ऑटो मोड से बाहर निकलना चाहते हैं, लेकिन अभी तक मैन्युअल मोड में स्विच करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास महसूस नहीं कर रहे हैं, तो एपर्चर प्रायोरिटी मोड (ए या एवी) और शटर प्रायोरिटी मोड (एस या टीवी) दो बहुत ही उपयोगी विकल्प हैं जो अधिकांश कैमरों पर उपलब्ध हैं. और आसानी से इस्तेमाल करने लायक हैं. (10 Photography Tips in Hindi)
अपर्चर प्रायोरिटी मोड आपको वह अपर्चर का चयन करने देता है जिसे आप करना चाहते हैं और फिर कैमरा शटर स्पीड को उसी के हिसाब से एडजस्ट करता है. उदाहरण के लिए, यदि आप एक इमेज क्लिक कर रहे हैं और बैकग्राउंड ब्लर करना चाहते हैं, तो आप बस एक वाइड अपर्चर का सिलेक्ट कर सकते हैं और बाकी का काम कैमरे अपने आप कर लेगा.
शटर प्रायोरिटी मोड में, आप उस शटर स्पीड का चयन करते हैं जिसका आप उपयोग करना चाहते हैं और कैमरा आपके लिए एपर्चर अपने आप सेट कर देता है. उदाहरण के लिए, यदि आप अपने डॉग को दौड़ते हुए क्लिक करना चाहते हैं तो आप हाई शटर शटर स्पीड का चयन कर सकते हैं और कैमरा को आपके लिए एपर्चर का चयन कर देगा.
कई फोटोग्राफर हाई आईएसओ में कभी भी शूटिंग से बचने की कोशिश करते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि इससे ग्रेनी इमेज यानी तस्वीरों में नॉइज दिखने लगेगा. हालांकि यह सच है कि हाई आईएसओ का उपयोग करने से इमेज क्वालिटी कम हो सकती है, लेकिन ये सब समय और स्थान पर निर्भर करता है.
यदि आप चाहते हैं कि आपकी इमेज में मोशन ब्लर न आ जाए इसलिए आप अपनी शटर स्पीड को कम करने से बचते हैं तो और आपके पास ट्राइपॉड भी है नहीं तो फिर कैसे काम बनेगा? तो बेहतर है कि फोटो को थोड़े नॉइज के साथ शार्प क्लिक करें और आईएसओ को बढ़ा दें. वैसे भी पोस्ट प्रोसेसिंग में नॉइज को कम कर सकते हैं. इसके अलावा, हाल के वर्षों में कैमरा तकनीक में इतना सुधार हुआ है कि अब आईएसओ 1600, 3200, 6400 या उससे अधिक पर भी अद्भुत तस्वीरों का पोस्ट प्रोडक्शन करना काफी संभव है.
जब भी संभव हो, हाई आईएसओ पर शूटिंग करते समय नॉइज को कम करने का एक तरीका वाइड अपर्चर का उपयोग करना है. अपनी इमेज को थोड़ा ओवरएक्सपोज करना भी मदद कर सकता है, क्योंकि पोस्ट प्रोसेसिंग में काफी मदद मिलती है. (10 Photography Tips in Hindi)
ये बेहद जरूरी है. पता चले कि आपने किसी खास मौके पर गलती से सारी तस्वीरें आईएसओ 800 पर ब्राइट क्लिक कर डालीं तो ये आपको निराश कर सकता है, खासकर अगर तस्वीरों को एक विशेष अवसर जैसे जन्मदिन, शादी की सालगिरह या अन्य कार्यक्रम पर क्लिक किया गया हो. ये एक मामूली गलती है लेकिन इससे आपका खेल खराब हो सकता है. हालांकि, इस अप्रिय आश्चर्य से बचने के लिए, कुछ भी शूट करने से पहले अपनी आईएसओ सेटिंग्स को जांचने और रीसेट करने की आदत डालें. वैकल्पिक रूप से, हर बार जब आप अपने कैमरे को उसके बैग में वापस रखने के लिए तैयार होते हैं, तो इसे रीसेट करने की आदत डालें.
व्हाइट वैलेंस आपको कलर को अधिक सटीक रूप से कैप्चर करने में मदद कर सकता है. विभिन्न प्रकार की लाइटिंग में अलग-अलग विशेषताएं हैं, इसलिए यदि आप व्हाइट वैलेंस को एडजस्ट नहीं करते हैं, तो आपकी फोटोग्राफी में रंग थोड़े नीले, नारंगी या हरे रंग या टेम्प पर हो सकते हैं.
पोस्ट प्रोसेसिंग में व्हाइट बैलेंस को निश्चित रूप से सेट किया जा सकता है, लेकिन यह थोड़ा थकाऊ हो सकता है यदि आपके पास सैकड़ों तस्वीरें हैं, जिन्हें मामूली एडजस्टमेंट की आवश्यकता है, इसलिए कोशिश करें कि ये कैमरे में ही हासिल हो सके. आपके कैमरे में पाई जाने वाली कुछ व्हाइट वैलेंस सेंटिंग्स Automatic White Balance, Daylight, Cloudy, Flash, Shade, Fluorescent and Tungsten होंगी. तो ये Photography Tips in Hindi जानकर आपको कैसा लगा? जरूर बताइएगा.
10 Photography Tips in Hindi
21 best places to visit in India in November: नवंबर का महीना भारत में यात्रा…
Photo Editing Tutorials Guide: फ़ोटो एडिटिंग आज के डिजिटल युग में एक महत्वपूर्ण स्किल बन…
15 Best Places to Visit in September in India Full Details Here: सितंबर का महीना…
Pahalgam Travel Guide: पहलगाम, जम्मू और कश्मीर का एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन…
Invisible NGO A team of 12 mountaineers under No Drugs Caimpaign set an example of…
Complete kashmir Travel Plan: कश्मीर, जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, हर यात्री की…
View Comments
आपका ब्लॉग बहुत ही रोचक था। ये जानकारी ज़रूर ही काम आयेगी। बच्चों की फोटोग्राफी के बारे में आप भी हमारा ये ब्लॉग पढ़ें: https://www.thechalaang.com/HI/blogdetails?child-photography-tips-in-hindi और हमें फॉलो करें।