Its Never Too Late: डिप्रेशन इज रियल, लेकिन मेरे दोस्त बात करने से ही बात बनेगी

Its Never Too Late

डिप्रेशन इज रियल। शायद इसे खत्म नहीं किया जा सकता। जिस समाज में हम रहते हैं वहां हर कदम पर गिद्ध मंडरा रहे हैं। वो तुमसे ऐसी उम्मीदें लगाने लगते हैं जिनके बारे में तुमने खुद नहीं सोचा होगा। हममें से कई उनकी उम्मीदों से खुद को रिलेट करने लगते हैं और फेल होने पर गलत कदम उठा लेते हैं। क्योंकि सुसाइड को लेकर बात करना बहुत अनकंफर्टेबल है, लेकिन इसका एकमात्र सलूशन बात करना ही है।

 

अगर बात नहीं करोगे तो इसके परिणाम बहुत खतरनाक हो जाएंगे। कहते हैं न कि हमेशा एक उम्मीद की किरण रहती है। सुसाइड किसी के लिए भी वो आखिरी ऑप्शन नहीं होना चाहिए। बिना किसी की मदद लिए खुद को खत्म कर देना ट्रेजडी है। क्योंकि किसी को नहीं पता कि आप पर क्या बीत रही है या आप किस परिस्थिति से गुजर रहे हैं। अपना फ्यूचर देखो, कितनी लाइफ बची है जीने के लिए।

बतौर समाज हम फेल तो बहुत पहले हो चुके हैं लेकिन बदलाव की एक किरण ही काफी है। स्कूली सिस्टम से इस बदलाव की जरूरत है। बतौर समाज हमें युवाओं, महिलाओं को एजुकेट करने की जरूरत है। किसी को तो आगे आना होगा। चर्चा शुरू करनी होगी। बॉलीवुड मसाला फिल्मों से इतर थोड़ा बहुत ही काम कर रहा है। लेकिन ऐसी कहानियों को सामने लाना होगा जिसका असर दिखे।

नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज है ’13 Reasons Why’, हो सकता है किन्हीं कारणवश कुछ लोगों को ये पसंद न आई हो लेकिन ऐसे कंटेंट की जरूरत है जो बिना किसी सेंसर के खुलकर बात करे। पूरी सीरीज में यही दिखाने की कोशिश की गई कि आपकी केवल एक ‘मामूली’ गलती कितनों की जिंदगी बर्बाद कर सकती है।

 

अगर जस्टिन हेना की पार्क में ली गई वो फोटो को एक बिगड़े बाप की बिगड़ी औलाद ब्रायस को नहीं दिखाता और ब्रायस उसे कॉलेज व्हाट्सऐप ग्रुप में नहीं भेजता तो शायद कहानी कुछ और होती।

जाने अनजाने में हम न जाने कितनों की फीलिंग हर्ट कर देते हैं और हमें उसका बाद में अहसास होता है। अंग्रेजी में कहते हैं न कि Its Never Too Late…. जब भी अहसास हो…. गलती मानो और बात करो। ऐसे समय में जहां लोगों के पास जॉब नहीं है, जिनके पास हैं उनकी जा रही है, पैसों की दिक्कत है, परिवार की जिम्मेदारी है.. बहुत चीजें हैं जो हमसे जुड़ी हैं। सब ठीक करने के लिए कभी भी जादू की छड़ी नहीं मिलने वाली है दोस्त।

 

हमें ही ठीक करना है यहीं रहके, चले गए तो फिर सब बर्बाद हो जाएगा।

हमारे यहां परिवारों में बात करने का कल्चर नहीं है। लेकिन बात करनी होगी। खुद को खत्म कर देना उसका इलाज नहीं है। बहुत सारे रिसोर्से मौजूद हैं। जरूरत है उन तक पहुंचने की। दोस्त, परिवार, संस्थान.. कहीं तो मदद मिलेगी। कई बार होता है कि जिसे किसी मददद की जरूरत है वो खुलकर बोल नहीं पाता। लेकिन मेरे दोस्त बात करने से ही बात बनेगी।

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